जलनेति क्या है?
जलनेति (Jal Neti), नेति का एक स्वरूप है। नेति कर्म षट् कर्म का एक अंग है।घेरंड संहिता के अनुसार शरीर की शुद्धि के लिए सात प्रकार की क्रियाओं का वर्णन किया गया है।इन्हें सप्तसाधन कहा जाता है।
शोधनं दृढ़ता चैव स्थैर्यं धैर्यं च लाघवं।
प्रत्यक्षं वीनिर्लिप्तं घटस्थं सप्त साधनं।।
इनमें से शोधन के लिए षड कर्मों का वर्णन किया गया है।
षट् कर्मणा शोधनं।
जब बात षट् कर्म की की जाती है तो इसके अंतर्गत धौति, वस्ति, नेति, नौली,त्राटक और कपालभाति का समावेश करते हैं। इनमे से जो नेति कर्म है उसका प्रयोग मुख्य रूप से उर्ध्वांग के शोधन के लिए होता है।
व्यवहार में इन दिनों नेति के दो स्वरूप सर्वाधिक प्रचलित है। ये है जल नेति और सूत्र नेति। इनमें से भी कुछ लोग सूत्र के स्थान पर रबड़ नेती को व्यवहार में लाए है।
जलनेति का वर्तमान स्वरूप
वैसे तो शास्त्र में सूत्र नेति का ही विधान अधिकांश मिलता है फिर भी यहाँ हम दोनो स्वरूपों के गुण धर्मों का विवेचन करने वाले हैं।
सूत्र नेति के लिए घेरंड संहिता के अनुसार एक वितस्ति (एक बित्ता) के सूक्ष्म सूत्र का प्रयोग करना चाहिए । इसे नासानाल में प्रवेश कर कर मुखमार्ग से निकालना चाहिए। इसे ही नेति कर्म कहा जाता है। अब इसी में सूत्र के स्थान पर यदि जल का प्रयोग किया जाएगा तो इसे जल नेति की संज्ञा दी जाएगी।
नेति (Jal Neti) कैसे करेंगे;
जलनेती के लिए एक विशेष प्रकार के लोटे का प्रयोग किया जाता है। इस लोटे का अग्रिम छिद्र इस प्रकार का होता है की यह बिना किसी परेशानी के नासिकाग्र में प्रवेश कराया जा सकता है।
जलनेति हेतु जल लेते समय उसके तापमान का विशेष ध्यान रखना चाहिए अन्यथा नासिका के श्लेष्म कला के जलने का भय रहता है।प्रयोग से पहले प्रयोक्ता को जल के तापमान का अंदाज़ा उसे अपनी हथेली पर डाल कर कर लेना चाहिए। इस जल में सेंधा नमक का उपयोग इस मात्रा में करना चाहिए जिससे की नासिका शलेष्म कला की सांद्रता से समान हो सके।
जल नेति के लाभ।
घेरंड संहित में ऐसा कहा गया है की यदि नेति सिद्ध हो जाएगी तो खेचरी भी सिद्ध हो जाएगी। इसके अतिरिक्त यह कफ दोष का शमन करती है। नित्य सेवन करने से नेति दृष्टि क्षमता को बढ़ाने वाली होती है। नेति के विषय में विस्तार स जानने के लिए नीचे दिया गया वीडीयो देखा जा सकता है।
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