इनहेलर छुड़ाने में अजवायन के फ़ायदे
आयुर्वेद [1] के अनुसार अजवायन के फ़ायदे कफ एवं वात विकारों में लाभकारी होती है। अजवाइन भी सामान्य रूप से हर भारतीय परिवार का हिस्सा है। चतुर्बीज में एक बीज अजवाइन का माना गया है। यह एक शाखायुक्त पौधा होता है जिसकी पत्तियाँ मांसल और रोयेंदार होती है। इसके फूल छत्र के आकार में लगे होते हैं। अप्रैल में फूल और उसके बाद फल लगते हैं।
समस्त भारत विशेष रूप से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान में इसकी खेती की जाती है। फलों से एक सुगंधित तेल पाया जाता है जिसका मुख्य घटक थायमोल होता है। जहां तक गुणों की बात है तो आयुर्वेद में इसे लघु और कटु तिक्त माना गया है। विपाक में कटु अजवाइन वीर्य में उष्ण होती है।
तीक्ष्ण और उष्ण होने के कारण यह कफ़वात शामक और पित्त वर्धक होती है। इसका प्रयोग वेदना शामक के रूप में किया जाता है।
जानिए लेप के रूप में अजवायन के फ़ायदे:
लेप के रूप में अजवायन का प्रयोग शोथ एवं वेदना का शमन करता है। चर्म विकारों और कीट दंश आदि के रोगियों में इसका लेप प्रयुक्त होता है।अजवाइन के सत्व को गरम पानी में मिला कर व्रण को धुलने में प्रयोग किया जाता है। उदार शूल के रोगियों में इसका लेप पेट पर करने का विधान है।
आभ्यांतर प्रयोग:
अरुचि, अग्निमाँद्य, अजीर्ण के रोगियों के लिए अजवायन का प्रयोग बहुत लाभकारी पाया गया है। इन रोगियों में इसके चूर्ण का प्रयोग गरम जल के साथ में करने का विधान है।जीर्ण कास के रोगियों को अजवायन का चूर्ण लेह के रूप में प्रयोग कराया जाता है।
श्वास के रोगियों में: श्वास रोगियों को अजवायन की भाप का प्रयोग बहुत लाभप्रद होता है। इसके लिए एक बर्तन में पानी उबाल कर उसमें अजवायन डाल कर भाप के रूप में प्रयोग कवन चाहिए।
प्रतिश्याय [2] में अजवायन को सरसों के तेल में पाक कर उस तेल का अभ्यंग बहुत असरदार होता है।
अजवायन का क्वाथ नहीं बनाया जाता है। इसके क्वाथ में इसके औषधीय गुण समाप्त हो जाते हैं। ऐसा इसके अंदर मिलने वाले उड़नशील तेलों की वजह से होता है।
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