औषधीय गुणों की खान है धनिया, जानिए कैसे करते है उपयोग
धनिया को आयुर्वेद में क़ुस्तुम्बरू के नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ होता है जो रोग के समूह को नष्ट करती हो।कुत्सितं रोग समूहं तुम्बति।
इसका एक नाम वितुन्नक [1] भी है। जिसका अर्थ होता है वह औषधि जिसके सेवन से कष्ट दूर होता हो।
विभते तुन्नं दुखं अस्मात।
अंग्रेज़ी में इसे कोरिएंडर के नाम से जाना जात है। वैसे तो इसके पौधे वर्षायु की श्रेणी में आते है।जिनके पत्ते पक्षवत विभक्त होते है।श्वेत या बैंगनी रंग के फूल जो छाते के रूप में होते हैं वे इस कुल की पहचान हैं। गोल एवं भूरे रंग के फल दबाने पर दो भागो में विभक्त हो जाते हैं। शीत ऋतु के अंत का काल इसके फूलने एवं फलने का आदर्श समय होता है। आयुर्वेद के मत से यह लघु गुण की और रस में कषाय एवं तिक्त होती है। विपाक में मधुर होते हुए भी इसका वीर्य उष्ण माना गया है।
धनिया प्रत्येक भारतीय रसोई का एक अभिन्न अंग है। इसका त्रिदोष शामक [2] प्रभाव होने के कारण यह अनेक व्याधियों में प्रयुक्त होती है।
धनिया के बाह्य प्रयोग:-
लेप के रूप में प्रयोग करने पर धनिया शोथ और शूल का नाश करती है। मस्तिष्क के लिए यह बाल्य होती है। तृष्णा के रोगियों में इसका सेवन प्यास बुझाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
पत्तों को पीस कर उनका लेप करने से भल्लातक के कारण होने वाले शोथ में लाभ मिलता है।
मुख पाक या गले के रोगों में हरे धनिए रस से गंडूश किया जाता है।नासागत रक्त पित्त में इसके रस का प्रयोग अवपीड़क नस्य के रूप में किया जाता है।
यदि किसी को बार बार प्यास लगती हो तो उसे धनिए को पाने में उबाल कर पीने के लिए देना चाहिये। ज्वर के रोगियों में धनिया के पाने का प्रयोग विशेष रूप से लाभकारी पाया गया है।
अन्य महत्वपूर्ण उपयोग
इसके अतिरिक्त बहुत सी महत्वपूर्ण औषधियों का मुख्य या प्रमुख घटक के रूप में धनिया का प्रयोग किया जाता है।इस प्रकार से हम कह सकते है की भारतीय मनीषियों ने धनिया का प्रयोग दैनिक जीवन में इसीलिए करना को कहा क्योकि इसके अनेकों औषधीय लाभ हमें आसानी से मिलते रहें।
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