गर्भ में पहले किस अंग की उत्पत्ति हुई
कौन सा अंग गर्भ में पहले उत्पन्न हुआ यह आयुर्वेदिक संहिताओं में शारीर स्थान में वर्णित है।जैसे कि चरक संहिता के शारीर स्थान में शरीर के निर्माण से लेकर आत्मा और मन तक के विभिन्न विषयों का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसके अध्याय -6 में भ्रूण के संबंध में कुल नौ प्रश्न पूछे गए हैं।इनमें से पहला ही प्रश्न अंग के निर्माण के सम्बंध में पूछा गया है।
इसका उत्तर देते हुए महर्षि आत्रेय ने विभिन्न ऋषियों के मत का उल्लेख विस्तार से किया है।कुमार शिरा भारद्वाज इस बात की वकालत करते हैं कि सिर का निर्माण सबसे पहले हुआ और उसके बाद अन्य अंगों का। वहीं बह्नीक देश के वैद्य कांकायन ने कहा कि हृदय पहला अंग है जो भ्रूण में बनता है। उन्होंने अपने दावे के समर्थन में तर्क दिया कि हृदय चेतना का स्थान है। इसलिए हृदय भ्रूण का पहला अंग है।इसी प्रकार आचार्य भद्रकाप्य के अनुसार सर्व प्रथम नाभि की उत्पत्ति होती है क्योंकि नाभि से ही गर्भ पोषण प्राप्त करता है।
इस विषय पर विभिन्न विचारों का तुलनात्मक विश्लेषण इस लेख में संकलित है। यह भ्रूणविज्ञान के आयुर्वेदिक दृष्टिकोण को समझने में सहायक होगा।
गर्भ में अंग उत्पत्ति विषयक 9 प्रश्न :-
१- किन्नु खलु गर्भस्याङ्गं पूर्वमभिनिर्वर्तते–
गर्भ में पहले कौन सा अंग उत्पन्न होता है।
२-कुक्षौ कुतो मुखः कथं चान्तर्गतस्तिष्ठति
गर्भ का मुख किधर रहता है और गर्भ गर्भाशय में किस प्रकार से रहता है?
३-किमाहारश्च वर्तयति कथं भूतश्च निष्क्रामति
गर्भ का आहार क्या है और वह किस प्रकार गर्भाशय से बाहर आता है?
४-कैश्चायमाहारोपचारैर्जातः सद्यो हन्यते
किस प्रकार के आहार से गर्भ की मृत्यु हो जाती है?
५-कैरव्याधिरभिवर्धते
गर्भ कैसे रोग रहित हो कर बढ़ता है?
६-किं चास्य देवादिप्रकोपनिमित्ता विकाराः संभवन्ति
क्या बालकों के रोग देवादि के प्रकोप से होते है?
७-आहोस्विन्न किंचास्य कालाकालमृत्य्वोर्भावाभावयोर्भगवानध्यवस्यति
गर्भ की अकाल मृत्यु होती है?
८-किंचास्य परमायुः
गर्भ की परमायु क्या है?
९-कानि चास्य परमायुषो निमित्तानीति
परमायु प्राप्ति के कारण क्या है?
इन प्रश्नो का उतार देते हुए महर्षि आत्रेय नें विभिन्न आचार्यों के मतों का उल्लेख किया जिन्हें नीचे की तालिका में देखा जा सकता है। यहाँ पर विद्यार्थियों की सुविधा हेतु अन्य आचार्यों के मत भी संकलित कर दिए गए है।
अंग | चरक | सुश्रुत/ भावप्रकाश | भेल |
शिर | कुमार शिरा भारद्वाज | शौनक | भारद्वाज |
हृदय | कांकायन | कृतवीर्य | पाराशर |
नाभि | भद्र काप्य | पाराशर | खंडकाप्य |
पक्वाशय एवं गुदा | भद्र शौनक | शौनक | |
पाणि एवं पाद | बडिश | मार्कण्डेय | बडिश |
इंद्रिया | विदेह जनक | ||
अविचार्य | मारीच काश्यप | ||
मध्य शरीर | गौतम | ||
चक्षु | काश्यप | ||
सर्वांग प्रत्यंग | धन्वन्तरि | धन्वन्तरि | |
सर्वांग प्रत्यंग | पुनर्वसु आत्रेय | पुनर्वसु आत्रेय |
सुश्रुत संहिता में जल के भेद-
एवंवादिनं भगवन्तमात्रेयमग्निवेश उवाच—श्रुतमेतद्यदुक्तं भगवता शरीराधिकारे वचः
किन्नु खलु गर्भस्याङ्गं पूर्वमभिनिर्वर्तते
कुक्षौ कुतो मुखः कथं चान्तर्गतस्तिष्ठति
किमाहारश्च वर्तयति कथं भूतश्च निष्क्रामति
कैश्चायमाहारोपचारैर्जातः सद्यो हन्यते
कैरव्याधिरभिवर्धते
किं चास्य देवादिप्रकोपनिमित्ता विकाराः संभवन्ति
आहोस्विन्न किंचास्य कालाकालमृत्य्वोर्भावाभावयोर्भगवानध्यवस्यति
किंचास्य परमायुः
कानि चास्य परमायुषो निमित्तानीति २०
उत्तर
तमेवमुक्तवन्तमग्निवेशं भगवान् पुनर्वसुरात्रेय उवाच — पूर्वमुक्तमेतद्गर्भावक्रान्तौ यथाऽयमभिनिर्वर्तते कुक्षौ यच्चास्य यदा संतिष्ठतेऽङ्गजातम् विप्रतिवादास्त्वत्र बहुविधाः सूत्रकृतामृषीणां सन्ति सर्वेषां तानपि निबोधोच्यमानान् शिरः पूर्वमभिनिर्वर्तते कुक्षाविति कुमारशिरा भरद्वाजः पश्यति सर्वेन्द्रियाणां तदधिष्ठानमिति कृत्वा हृदयमिति काङ्कायनो बाह्लीकभिषक् चेतनाधिष्ठानत्वात् नाभिरिति भद्रकाप्य आहारागम इति कृत्वा पक्वाशयगुदमिति भद्रशौनकः मारुताधिष्ठानत्वात् हस्तपादमिति बडिशः तत्करणत्वात् पुरुषस्य इन्द्रियाणीति जनको वैदेहः तान्यस्य बुद्ध्यधिष्ठानानीति कृत्वा परोक्षत्वादचिन्त्यमिति मारीचिः कश्यपः सर्वाङ्गाभिनिर्वृत्तिर्युगपदिति धन्वन्तरिः तदुपपन्नं सर्वाङ्गानां तुल्यकालाभिनिर्वृत्तत्वाद्धृदयप्रभृतीनाम् सर्वाङ्गानां ह्यस्य हृदयं मूलमधिष्ठानं च केषाञ्चिद्भावानाम् नच तस्मात् पूर्वाभिनिर्वृत्तिरेषां तस्माद्धृदयप्रभृतीनां सर्वाङ्गानां तुल्यकालाभिनिर्वृत्तिः सर्वे भावा ह्यन्योन्यप्रतिबद्धाः तस्माद्यथाभूतदर्शनं साधु २१
Reference:-
Charak Samhita, https://en.wikipedia.org/wiki/Charaka_Samhita
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