Types of water according to Sushrut Samhita:
Sushrut samhita has a separate class (वर्ग) for water known as jal varg (जल वर्ग) . Water is of two types according to sushrut sanhita[1]. When it comes from sky it is tasteless. Acharya Sushrut called this heavenly water as “antariksh” jal and considered it as “ekant pathya”.
Characteristics of heavenly water ( आंतरिक्ष जल ) according to Sushrut:
The water coming from sky also known as अंतरिक्ष जल is purest form of water. when it comes in contact with environmental impurities it becomes polluted. The antariksh jal is tasteless. It is refreshing and pure like nectar.
जल ले दो भेद होते है।
आंतरिक्ष और भौम।
आकाश से गिरने वाला जल[2] अव्यक्त रस का माना जाता है। यह एकांत रूप से पथ्य कहा गया है।यह जल जब भूमि पर गिरता है तो स्थान विशेष के गुण के अनुसार इसमें रस की उत्पत्ति हो जाती है।आचार्य चरक ने भी सूत्र स्थान में शस्त्र शास्त्र और जल को पत्रापेक्षि बताया है।
भूमि के अनुसार जल के भेद ( सुश्रुत ४५/६)
भूमि का गुण | जल का रस |
पार्थिव गुण | अम्ल, लवण |
जल गुण | मधुर |
अग्नि गुण | कटु, तिक्त |
वायु गुण | कषाय |
आकाश गुण | अव्यक्त |
- अंतरिक्ष जल के आचार्य सुश्रुत 4 प्रकार बताते है।
१-धार
२- कार
३- तौषार
४-हैम
- इनमे लघु होने के कारण धार जल प्रधान होता है।
- अश्विन मास में बरसने वाला जल प्रायः गांग जल होता है।
- जल की परीक्षा के लिए शाली चावल परीक्षण विधी का प्रयोग करते है।
- इस विधी में प्रयुक्त होने वाला पात्र चाँदी का होता है।
- परीक्षण हेतु चावल हो एक मुहूर्त के लिए रखने का विधान है।
- यदि कोथ होता है तो यह सामुद्र जल का संकेतक होता है।
- अश्विन मास में बरसने वाला सामुद्र जल भी पीने के लिए उपयुक्त होता है।
- दोनों प्रकार के जल में गांग जल प्रधान होता है।
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