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Sushrut Sanhita Sutra Sthan-36

सुश्रुत संहिता (Sushrut Sanhita) कैसे पढ़े?

सुश्रुत [1] संहिता (Sushrut Sanhita) को सही तरीक़े से समझने के लिए, हमें अपने मन से यह विचार निकाल कर चलना होगा की सुश्रुत शल्य का ग्रंथ है. वैसे यह बात संहिता के  आरम्भ में ही स्पष्ट कर दी गयी है। सुश्रुत संहिता केवल शल्य का ग्रंथ नहीं है।बल्कि यह शल्य तंत्र प्राधान्य वाला ग्रंथ है ।

यहाँ पर व्याधि  का कारण  शल्य माना गया  है।शोक को भी शल्य  माना जाता है। इसी प्रकार  गर्भ जैसी  स्वाभाविक प्रक्रिया  भी शल्य हो सकती है ।शोथ की पूरी चिकित्सा विधी का वर्णन आचार्य ने कई स्थानों पर किया है। लेकिन सूत्र स्थान का 36 वाँ अध्याय इस दृष्टि से एक महत्वपूर्ण अध्याय है।

सूत्र -36 की विशेषता :-

बाह्य प्रयोग के लिए केवल शोथ से संबंधित औषधियों का वर्णन इस अध्याय की विशेषता है।

त्रिदोष, रक्त, विष से होने वाले शोथ की औषधियों के वर्णन से अध्याय शुरू होता है। इन सभी औषधियों का प्रयोग लेप के रूप में करने का विधान है। आचार्य ने केवल औषधियों का वर्णन नहीं किया है, बल्की दोष के अनुसार प्रयोग भी बताए हैं। यही  नहीं किस दोष में प्रलेप को शीतल प्रयोग करना है और किस दोष में उष्ण यह भी बताया गया है।

शोथ की चिकित्सा में पूय आदि का स्त्राव कराना पहला काम होता है।इसके बाद व्रण का शोधन किया जाता है । इसके लिए सबसे पहले शोथ का पाक कराया जाता है।इसके बाद उसमें भरे हुए पूय आदि दोषों को बाहर निकालना बहुत ज़रूरी होता है। 

इसके लिए सबसे पहले पाचन औषधियों काप्रयोग किया जाता है। इनमें मुख्य रूप से मूली सहजनके बीज आदि औषधियाँ प्रमुख है।

इस अध्याय को और विस्तार से समझने के लिए आप नीचे दिए गए video को देख सकते है।

सुश्रुत संहिता (Sushrut Sanhita) पढ़ने  के लिए आप नीचे दिए गए लिंक को क्लिक करें  ।

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