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Which Cooking Utensil is Best according to Ayurved

Why Good Cooking Utensil is So Important

In today’s busy lifestyle, no one has time to eat food. The result of which has been that the prevalence of many types of fast food started increasing. Their side effects became apparent as quickly as the changes in food habits. Bad food habits are considered to be one of the main reasons for the increasing effects of obesity and related diseases like diabetes, high blood pressure and heart disease.In the end, the conclusion of all discussions was that it is impossible to stay healthy by neglecting food. We are talking about various aspects related to food preparation and presentation. And an important aspect in all this is the different types of  Cooking Utensil [1] are used for preparing and serving food.

When it came to solving these real problems, once again Ayurveda’s dietary laws became relevant. Today, the whole world is more or less following the principles of Ayurveda for food or trying to do so.The focal point of all these discussions was always food. Because of this, an important aspect on which the nutritional value of the food depends has become secondary.

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Ayurvedic View About Cooking Utensil.:-

The topic of today’s discussion mainly focuses on the utensils used in food preparation and their properties and side effects. Because there is a principle of गुणान्तराधान in Ayurveda. According to this, one of the objectives of cooking  a food is to create new properties in it. The entire process of cooking takes place in the cooking vessel of the food.

Therefore, the same qualities will be transferred to the cooked food as in the vessel used to prepare the food. For example, when someone is deficient in iron in the blood, he is advised to cook food in iron utensils. There are many such topics which we will discuss further.

It would be more justified if Ayurveda is called a science of life rather than a medical system. There are many reasons behind saying this. And the most important reason is its “prayojan”. When Acharya Charak [2] explains the “prayojan” of Ayurveda, he says “Swasthasya Swasthya Rakshanam”, which means maintaining the health of a healthy person. Don’t let him fall ill. For this, three “  upastambha” have been envisioned. These are “ Ahaar., Nidra and Brahmachary”. Here also Ahar has got the first place. Looking at all this, it can be said that “Praninam Pranam Aaharam”.

Read in Hindi:-

आज की इस भाग दौड़ भरी दिन चर्या में किसी के पास भी भोजन करने का सही समय नहीं है। जिसका परिणाम ये हुआ है की अनेक प्रकार के फ़ास्ट फ़ूड का प्रचलन बढ़ने लगा। इनके दुष्परिणाम भी उतनी ही तेज़ी से सामने आले लगे जितनी तेज़ी से भोजन सम्बन्धी आदतों में बदलाव हुए।

मोटापा और उससे सम्बंधित रोग जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग के बढ़ते प्रभाव में एक मुख्य कारण भोजन सम्बन्धी ग़लत आदतों को माना जाने लगा। अंत में सभी चर्चाओं  का निष्कर्ष यही निकाला गया की भोजन की उपेक्षा कर के स्वस्थ रहना असम्भव है। जब इन सही समस्याओं के समाधान की बात आयी तो फिर से एक बार आयुर्वेद के आहार सम्बन्धी विधान प्रासंगिक हो गए।आज सम्पूर्ण विश्व भोजन के लिए कमोबेश आयुर्वेद के सिद्धांतों का पालन कर रहा है या करने की कोशिश में लगा है। 

इन सब चर्चाओं का केंद्र बिंदु हमेशा से आहार द्रव्य ही रहा। इस वजह से एक महत्वपूर्ण पक्ष जिसपर आहार की पौष्टिकता निर्भर करती वह गौण हो गया।हम बात कर रहे है भोजन निर्माण और प्रस्तुतीकरण से सम्बंधित विविध पक्षों की। और इन सब में एक महत्वपूर्ण पक्ष है भोजन निर्माण और परोसने के लिए प्रयोग में लाए जानी वाले विभिन्न प्रकार के पात्र।

आज के समय पात्र इतना महत्वपूर्ण क्यों?

आज की इस चर्चा का विषय मुख्य रूप से भोजन निर्माण में प्रयुक्त पात्रों और उनके गुण धर्मों और दुष्प्रभावों पर केंद्रित है।क्योकि आयुर्वेद में गुणान्तराधान का एक सिद्धांत है। इसके अनुसार किसी आहार द्रव्य की कल्पना का एक उद्देश्य उसमें नवीन गुणों की उत्पत्ति करना है।इस गुण उत्पत्ति की पूरी प्रक्रिया का सम्पादन भोजन के  पाक पात्र में होता है। इसलिए जैसा पात्र भोजन निर्माण में प्रयुक्त होगा वैसे ही गुणों का आधान पके हुए भोजन में होगा। जैसे कि जब किसी को रक्त में लौह तत्व की कमी होती है तो उसे लोहे के बर्तन में भोजन पकाने की सलाह दी जाती है। ऐसे ही अनेक विषय है जिनकी चर्चा हम आगे करेंगे।   

आयुर्वेद को चिकित्सा पद्धति ना मान कर जीवन का विज्ञान कहा जाए तो ज्यादा न्यायोचित होगा। ऐसा कहने के पीछे एक नहीं अनेक कारण है। और जो सबसे मुख्य कारण है वो है इसका प्रयोजन। जब आचार्य चरक आयुर्वेद का प्रयोजन बताते है तो वो कहते है “स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम”।

जिसका अर्थ होता है स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को बनाए रखना। उसे बीमार ही ना पड़ने देना। इसके लिए तीन उपस्तंभो की कल्पना की गयी है। ये है आहार निद्रा ब्रह्मचर्य।यहाँ पर भी अहार  को प्रथम स्थान मिला है। इन सबको देखते हुए ये कहा जा सकता है की “प्राणिनाम प्राणम् आहारं” । और उस प्राण शक्ति के निर्माण का आधार है उसका पाक पात्र। 

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